मुझसे क्या रिश्ता है,
सोचता हूँ क्या कहा होगा जब
तने हुए पेड़ों ने किरकिराती आंधियोँ से पूछा होगा
मुझ से क्या रिश्ता है, मुझसे क्यूँ टकराते हो
सोचता हूँ, क्या कहा होगा जब
घास की कोमल पत्तियोँ ने ओस की बूंदो से पूछा होगा
मुझसे क्या रिश्ता है, मेरे आगोश मेँ क्यूँ आते हो
सोचता हूँ, क्या कहा होगा जब
समंदर के सुकून ने नदियोँ के उफान से पूछा होगा
मुझ से क्या रिश्ता है, मुझमेँ क्यूँ समाते हो
उन्हें भी पता है,
पेडो के गर्व किरकिराती आंधियो के टकराने से है,
घास की कोमलता ओस की बूंदो के आगोश से है,
समंदर का सुकून नदी के उफान के समा जाने से है,
शायद, मेरा भी
अस्तित्व,
तुम्हे पा लेने मेँ है.