Friday, February 6, 2009

दर्द तुम रोज क्यों चले आते हो

एक एहसास
सारे मौसम, मैं अकेला, अंतहीन रात
करवटों में पतझड की आहट, पलकों में बारिश की नमी
ह्र्दय में गर्मी की जलन, होंठों में सर्दी का कंपन
फ़िर कभी दबी हुई कई,
सिसकती चीख,
चीरती रात का सन्नाटा
दर्द तुम रोज क्यों चले आते हो,
तुम ही शायद मेरे अकेले सखा हो....

एक एहसास
सारे मौसम, मैं अकेला, अंत की रात
उलझे केश, सहमा सा मन

थरथराते हाथ, अकडा सा बदन
फ़िर कभी दबी हुई इक,

चीरती चीख,
सिसकती रात का सन्नाटा,
दर्द तुम रोज क्यों चले आते हो,
तुम ही शायद मेरे अकेले सखा हो....


अंतिम एहसास
तूफानी मौसम, मैं अकेला, मौत का अटटाहस
बंद होती आँखें, तेज होती साँसें
कभी हिचकी, कभी उबकाई,
फ़िर कभी खुली हुई अंतिम....,
सिसकती, चीरती,चीखती,रात

और सन्नाटा,
दर्द तुम अब नहीं आ पाओगे
तुम अब भी मेरे अकेले सखा हो.....

Wednesday, February 4, 2009

भूली बिसरी पँक्तियाँ















आग उगलते अभिसारों का
वैभव दर्पण दमक रहा है
कल का वो शीतल आँचल
अब अंगारों सा धधक रहा है....

कल कल्पना मधुर यौवन थी
आज कल्पना व्यथा सागर है
जीवन के सीने मे जीवन
काँटे जैसा खट्क रहा है....

मात्र साँन्तवना ग्राह्य नहीं है
भाव दमन संभाव्य नहीं है
सुमन उगा लो अभी समय है
अभी लुटा म्रदु काव्य नहीं है....
वरन भव्य विस्फ़ोट्क होगा
उर मे जो युग धधक रहा है....

Sunday, February 1, 2009

दिन का स्वागत


महाकवि कालिदास की कलम से:
दिन का स्वागत

आज की तरफ़ देखो
क्योंकि यही जीवन है, यही जीवन का सार है.
इसकी छोटी सी यात्रा मे आपके अस्तित्व की तमाम सच्चाइया बिखरी है:

विकास का आनन्द
कर्म का सुख
सुन्दरता का आकर्शण,

क्योकि गुजरा कल तो एक सपना है
और आने वाला कल सिर्फ़ एक झलक,
परन्तु आज सही से जी ले,तो गुजरा पल सुखद सपना होगा

और हर आने वाला कल, आशा की झलक.
इसलिये, अच्छी तरह से देख लो इस दिन को!
दिन का स्वागत का यही तरीका है.