एक एहसास
सारे मौसम, मैं अकेला, अंतहीन रात
करवटों में पतझड की आहट, पलकों में बारिश की नमी
ह्र्दय में गर्मी की जलन, होंठों में सर्दी का कंपन
फ़िर कभी दबी हुई कई,
सिसकती चीख,
चीरती रात का सन्नाटा
दर्द तुम रोज क्यों चले आते हो,
तुम ही शायद मेरे अकेले सखा हो....
एक एहसास
सारे मौसम, मैं अकेला, अंत की रात
उलझे केश, सहमा सा मन
थरथराते हाथ, अकडा सा बदन
फ़िर कभी दबी हुई इक,
चीरती चीख,
सिसकती रात का सन्नाटा,
दर्द तुम रोज क्यों चले आते हो,
तुम ही शायद मेरे अकेले सखा हो....
अंतिम एहसास
तूफानी मौसम, मैं अकेला, मौत का अटटाहस
बंद होती आँखें, तेज होती साँसें
कभी हिचकी, कभी उबकाई,
फ़िर कभी खुली हुई अंतिम....,
सिसकती, चीरती,चीखती,रात
और सन्नाटा,
दर्द तुम अब नहीं आ पाओगे
तुम अब भी मेरे अकेले सखा हो.....